सपोर्ट लोकल,सपोर्ट छोटे दुकानदार छतरपुर के बमीठा चौराहे पर शाम ढलने के साथ चौराहे में हलचल बढ़ने लगी थी। सड़क के किनारे,एक बूढ़ी अम्मा अपनी छोटी सी दुकान लगाए बैठी थी। उनके दुकान में गर्मागरम सिंघाड़े रखे हुए थे,और उनके पास एक पुरानी चटाई बिछी थी। अम्मा के चेहरे पर झुर्रियाँ थीं, लेकिन उनकी आँखों में एक अजीब सा साहस और ताजगी थी, जैसे उन्होंने बहुत कुछ देखा और झेला हो बुधवार का दिन सर्दी की शाम थी, हवा में ठंडक महसूस हो रही थी, लेकिन अम्मा का चेहरा गर्मी से भरा था। वह धीरे-धीरे, हर गुजरते हुए हर व्यक्ति से कहती, “ले लो, सिंघाड़ा भैया,सर्दी में राहत देता है! कुछ लोग नजरअंदाज कर जाते, कुछ लोग मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाते, लेकिन अम्मा का मन कभी नहीं टूटता। उनकी आवाज़ में एक अद्भुत विश्वास था, जैसे वह जानती थी कोई न कोई उनके पास जरूर आएगा। हमारा जिम्मा, छोटे दुकानदारों का सपोर्ट आजकल हम जब भी सड़क पर चलते हैं, छोटे-छोटे दुकानदारों की छोटी सी दुकानों से गुजरते हैं। जिनमें से कुछ लोग मूंगफली, सिंघाड़ा, चाय या अन्य ताजे खाद्य पदार्थ बेचते हैं। ये दुकानदार हमारी आँखों से ओझल हो जाते हैं, ले...
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