कहते हैं, "पैसे का कुछ नहीं होता, पर जब खर्च हो जाए तो समझ आता है!" कुछ ऐसा ही हुआ है मध्य प्रदेश के खजुराहो के पास बने बेनी सागर डैम के पार्क के साथ। पर्यटन विभाग ने लाखों रुपये उड़ाए थे, ताकि इस पार्क में पर्यटकों का हुजूम लगे, मगर अब यह पार्क एकदम से उदास और भूतिया सा लगता है।
यहाँ तक कि, जिस पुराने ट्रेन इंजन को पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए रखा गया था, वह भी अब अपना "मूड" नहीं बना पा रहा है। जंग ने उसे इस तरह घेर लिया है कि अब वह ट्रेन कम, "झंझट इंजन" ज्यादा लगता है। अब ये इंजन ऐसा लगता है जैसे उसकी जिंदगी की बुरी तारीखें शुरू हो गई हों।
फिर भी, बड़े सवाल उठ रहे हैं— आखिर इस पार्क का निर्माण क्यों किया गया था ? क्या यह पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए था या बस किसी को दिखाने के लिए कि हम भी कुछ कर सकते हैं ?
अब सवाल उठता है कि जब पार्क बनाते समय लाखों रुपये खर्च किए गए थे, तो रख-रखाव पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया ? क्या यह सिर्फ इसलिए था कि पार्क का निर्माण सिर्फ फोटोशूट करके शासन से राशि का गवान करना था बेनी सागर डैम पार्क का वर्तमान हालत देखकर यह लगता है कि यहाँ सिर्फ पैसा खर्च हुआ है, परंतु देखभाल की कोई योजना नहीं बनी। यह पार्क अब एक काव्यात्मक उदाहरण बन चुका है कि "जंग लगने से पहले क्या कोई भी चीज़ कभी चमक सकती है?" अगर इस पार्क को ठीक से संभाला गया होता, तो शायद आज यह पर्यटकों के बीच एक स्पॉट बन चुका होता। लेकिन फिलहाल तो यह अपनी जंग खाती ट्रेन और बस एक हंसी का कारण बन कर रह गया है!
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